एक बार एक
हंस और हंसिनी
हरिद्वार के सुरम्य
वातावरण से भटकते
हुए, उजड़े वीरान
और रेगिस्तान के
इलाके में आ
गये! हंसिनी ने
हंस को कहा
कि ये किस
उजड़े इलाके में
आ गये हैं
?? यहाँ न तो
जल है, न
जंगल और न
ही ठंडी हवाएं
हैं यहाँ तो
हमारा जीना मुश्किल
हो जायेगा ! भटकते
भटकते शाम हो
गयी तो हंस
ने हंसिनी से
कहा कि किसी
तरह आज की
रात बीता लो,
सुबह हम लोग
हरिद्वार लौट चलेंगे
!
रात हुई तो
जिस पेड़ के
नीचे हंस और
हंसिनी रुके थे,
उस पर एक
उल्लू बैठा था।
वह जोर से
चिल्लाने लगा। हंसिनी
ने हंस से
कहा- अरे यहाँ
तो रात में
सो भी नहीं
सकते। ये उल्लू
चिल्ला रहा है।
हंस ने फिर
हंसिनी को समझाया
कि किसी तरह
रात काट लो,
मुझे अब समझ
में आ गया
है कि ये
इलाका वीरान क्यूँ
है ?? ऐसे उल्लू
जिस इलाके में
रहेंगे वो तो
वीरान और उजड़ा
रहेगा ही।
पेड़ पर बैठा
उल्लू दोनों की
बातें सुन रहा
था। सुबह हुई,
उल्लू नीचे आया
और उसने कहा
कि हंस भाई,
मेरी वजह से
आपको रात में
तकलीफ हुई, मुझे
माफ़ करदो। हंस
ने कहा- कोई
बात नही भैया,
आपका धन्यवाद! यह
कहकर जैसे ही
हंस अपनी हंसिनी
को लेकर आगे
बढ़ा ..पीछे से
उल्लू चिल्लाया, अरे
हंस मेरी पत्नी
को लेकर कहाँ
जा रहे हो।
हंस चौंका- उसने
कहा, आपकी पत्नी
??
अरे भाई, यह
हंसिनी है, मेरी
पत्नी है,मेरे
साथ आई थी,
मेरे साथ जा
रही है! उल्लू
ने कहा- खामोश
रहो, ये मेरी
पत्नी है। दोनों
के बीच विवाद
बढ़ गया। पूरे
इलाके के लोग
एकत्र हो गये।
कई गावों की
जनता बैठी। पंचायत
बुलाई गयी। पंचलोग
भी आ गये!
बोले- भाई किस
बात का विवाद
है ??
लोगों ने बताया
कि उल्लू कह
रहा है कि
हंसिनी उसकी पत्नी
है और हंस
कह रहा है
कि हंसिनी उसकी
पत्नी है! लम्बी
बैठक और पंचायत
के बाद पंच
लोग किनारे हो
गये और कहा
कि भाई बात
तो यह सही
है कि हंसिनी
हंस की ही
पत्नी है, लेकिन
ये हंस और
हंसिनी तो अभी
थोड़ी देर में
इस गाँव से
चले जायेंगे। हमारे
बीच में तो
उल्लू को ही
रहना है। इसलिए
फैसला उल्लू के
ही हक़ में
ही सुनाना चाहिए!
फिर पंचों ने
अपना फैसला सुनाया
और कहा कि
सारे तथ्यों और
सबूतों की जांच
करने के बाद
यह पंचायत इस
नतीजे पर पहुंची
है कि हंसिनी
उल्लू की ही
पत्नी है और
हंस को तत्काल
गाँव छोड़ने का
हुक्म दिया जाता
है!
यह सुनते ही हंस
हैरान हो गया
और रोने, चीखने
और चिल्लाने लगा
कि पंचायत ने
गलत फैसला सुनाया।
उल्लू ने मेरी
पत्नी ले ली!
रोते- चीखते जब
वह आगे बढ़ने
लगा तो उल्लू
ने आवाज लगाई
- ऐ मित्र हंस,
रुको! हंस ने
रोते हुए कहा
कि भैया, अब
क्या करोगे ?? पत्नी
तो तुमने ले
ही ली, अब
जान भी लोगे
? उल्लू ने कहा-
नहीं मित्र, ये
हंसिनी आपकी पत्नी
थी, है और
रहेगी! लेकिन
कल रात जब
मैं चिल्ला रहा
था तो आपने
अपनी पत्नी से
कहा था कि
यह इलाका उजड़ा
और वीरान इसलिए
है क्योंकि यहाँ
उल्लू रहता है!
मित्र,
ये इलाका उजड़ा
और वीरान इसलिए
नहीं है कि
यहाँ उल्लू रहता
है। यह इलाका
उजड़ा और वीरान
इसलिए है क्योंकि
यहाँ पर ऐसे
पंच रहते हैं
जो उल्लुओं के
हक़ में फैसला
सुनाते हैं!
शायद 65 साल की
आजादी के बाद
भी हमारे देश
की दुर्दशा का
मूल कारण यही
है कि हमने
उम्मीदवार की योग्यता
न देखते हुए,
हमेशा ये हमारी
जाति का है.
ये हमारी पार्टी
का है के
आधार पर अपना
फैसला उल्लुओं के
ही पक्ष में
सुनाया है, देश
क़ी बदहाली और
दुर्दशा के लिए
कहीं न कहीं
हम भी जिम्मेदार
हैँ!